रसीदी टिकट Epi -21 (Rasidi Ticket ,Amrita pritam's Biography part-21)
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1975 में मेरे उपन्यास "सागर और सीपियाँ के आधार पर जब 'कादम्बरी' फिल्म बन रही थी तो उसके डायरेक्टर ने मुझसे फिल्म का गीत लिखने के लिए कहा। ... जब मैं गीत लिखने लगी तो अचानक वह गीत सामने आ गया ,जो मैंने 1960 में इमरोज़ से पहली बार मिलने पर अपने मन की दशा के बारे में लिखा था। ..... तब मुझे लगा जैसे चेतना के रूप में मैं पन्द्रह बरस पहले की वह घड़ी फिर से जी रही हूँ
अम्बर की इक पाक सुराही ,बादल का एक जाम उठाकर
घूँट चांदनी पी है हमने ,बात कुफ़्र की,की है हमने
कैसे इसका क़र्ज़ चुकाएँ ,मांग के अपनी मौत के हाथों
यह जो ज़िंदगी ली है हमने ,बात कुफ़्र की, की है हमने
अपना इसमें कुछ भी नहीं है ,रोज़े -अज़ल से उसकी अमानत
उसको वही तो दी है हमने ,बात कुफ़्र की, की है हमने
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